14 जून 2011
हरिद्वार। एक और स्वामी रामदेव का अनशन, जो कई दिनों तक देश की सुर्खियों में बना रहा। जिनका अनशन तुड़वाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी गई...। दुसरी ओर गंगा एवं कुंभ मेला क्षेत्र को खनन माफियाओं के चंगुल से मुक्त कराने की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे उस साधु की किसी को सुध भी ना रही, जिसने गंगा नदी की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी।
हम बात कर रहे हैं मातृसदन के संत स्वामी निगमानंद की, जिनकी सोमवार को देहरादून के हिमालय अस्पताल में मौत हो गई। उसी हिमालयन अस्पताल में जहां स्वामी रामदेव को तबीयत बिगड़ने पर भर्ती किया गया था।
एक संन्यासी ने काले धन के मुद्दे पर अनशन किया तो दूसरे ने मैली होती गंगा को बचाने के लिए अनशन का रास्ता चुना। लेकिन फर्क देखिए एक का अनशन तुड़वाने के लिए उत्तराखंड सरकार ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और दूसरे की सुध तक नहीं ली। इस अनदेखी का परिणाम हुआ कि स्वामी निगमानंद ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया।
34 साल के स्वामी निगमानंद गंगा को बचाने के लिए 19 फरवरी से अनशन पर थे। उनकी मांग थी कि गंगा किनारे सभी स्टोन क्रेशर बंद किए जाएं। 12 में से 11 क्रेशर तो बंद हो गए, लेकिन एक हिमालयन क्रेशर अभी भी चालू था। निगमानंद इसी के विरोध में हरिद्वार में अनशन पर थे।
हरिद्वार में अनशन पर बैठे निगमानंद की हालत गंभीर होने पर प्रशासन ने उन्हें आनन-फानन में देहरादून के हिमालयन अस्पताल में भर्ती करा दिया था। 2 मई को वो कोमा में चले गए थे।
उत्तरांचल के सीएम रमेश पोखरियाल निशंक ने रामदेव का अनशन तुड़वाने के लिए पूरा जोर लगा दिया लेकिन निगमानंद का हालचाल लेना तक मुनासिब नहीं समझा। केंद्र सरकार ने निगमानंद के उपवास पर कोई ध्यान तक नहीं दिया।
दुसरी ओर स्वामी के सहयोगियों का आरोप हैं कि उन्हें जहर देकर मारा गया हैं और वे एम्स में स्वामी का पोस्टमार्टम कराने की मांग कर रहे हैं।
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